Monday, April 18, 2011

मेरे चारागर को नवेद हो, सफ़-ए-दुश्मना को खबर करो


उर्दू के शीर्षस्थ शायरों में शुमार होता है फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का. आज सुनिए इक़बाल बानो से उनकी यह मास्टरपीस ग़ज़ल:



न गंवाओ नावक-ए-नीमकश, दिल-ए-रेज़ा रेज़ा गंवा दिया
जो बचे हैं संग समेट लो, तन-ए-दाग़-दाग़ लुटा दिया

मेरे चारागर को नवेद हो, सफ़-ए-दुश्मना को खबर करो
जो वो क़र्ज़ रखते थे जान पर, वो हिसाब आज चुका दिया

जो रुके तो कोह-ए-गरां थे हम, जो चले तो जां से गुज़र गए
रह-ए-यार हम ने क़दम क़दम, तुझे यादगार बना दिया

Thursday, April 14, 2011

इक न इक ज़ुल्मत से जब बाबस्ता रहना है तो 'जोश'


जोश मलीहाबादी साहब की प्रख्यात ग़ज़ल एक बार पुनः उस्ताद मेहदी हसन की आवाज़ में -



फ़िक्र ही ठहरी तो दिल को फ़िक्र-ए-खूबां क्यूँ न हों
ख़ाक होना है तो ख़ाक-ए-कू-ए-जाना क्यूँ न हों

जीस्त है जब मुस्तकिल आवारागर्दी ही का नाम,
अक्ल वालों फिर तवाफ़-ए-कू-ए-जाना क्यूँ न हों

इक न इक रीफत के आगे सजदा लाजिम है तो फिर
आदमी महव-ए-सजूद-ए-सिर-ए-खूबां क्यूँ न हों

इक न इक ज़ुल्मत से जब बाबस्ता रहना है तो 'जोश'
जिन्दगी पर साया-ए-जुल्फ-ए-परीशां क्यूँ न हों

Monday, April 11, 2011

इक उम्र का रोना है दो दिन की शनासाई


उस्ताद मेहदी हसन ख़ान साहेब से सुनिये शहज़ाद अहमद का कलाम



जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुसवाई
अब ख़ाक उड़ाने को बैठे हैं तमाशाई

तारों की ज़िया दिल में एक आग लगाते हैं
आराम से रातों को सोते नहीं सौदाई

रातों की उदासी में ख़ामोश है दिल मेरा
बेहिस हैं तमन्नाएं नींद आये के मौत आई

अब दिल को किसी करवट आराम नहीं मिलता
इक उम्र का रोना है दो दिन की शनासाई